Hindi- The contestation of values in Diaspora literature
Author Name
Vibha Malick
Author Address
Mahatma Gandhi Antarashtriya Hindi Vishwavidyalaya
Keywords
Diaspora Literature, Indian Diaspora, Indenture Labour, Old Diaspora
Abstract
अपनी जन्मभूमि से दूर दूसरे स्थान पर रहना प्रवास कहलाता है।प्रवासी व्यक्ति वे लोग हैं जो अपना देश जन्मस्थान छोड़कर बेगाने देश में अनिश्चित समय के लिए जाते है और वही बसने का फैसला कर लेते हैं। प्रवासी की स्थिति अनिश्चित होती है लक्ष्य प्राप्ति के पश्चात वह पुनः अपनी धरती पर लौट भी सकता है। दूसरे शब्दों में कहे तो बेगाने देश में रोजगार की तलाश या अधिक आर्थिक साधनों को प्राप्त करने की इच्छा में अस्थायी तौर पर रहने वाले व्यक्तियों को ‘प्रवासी’ कहा जाता हैं। भारतीयों ने बीसवीं सदी के आरंभ में रोजगार और आर्थिक साधनों को प्राप्त करने की इच्छा से प्रवास को अपनाया और यूरोपीय, अमेरिकी महाद्वीपों में प्रवेश किया। प्रवास के बहुत से विविध आयाम रहे है जैसे रोजी-रोटी, सुरक्षा,नवीन अवसरों की तलाश, उच्च आर्थिक साधनों की प्राप्ति,परिवार और संतान के उज्जवल भविष्य के लिए व्यक्ति अपने देश को छोडकर दूसरे देश में प्रवास करता है।
प्रवासी चाहे किसी भी देश में रहते हो लेकिन मातृभूमि से दूर रहने की त्रासदी वे सभी अवश्य भोगते है। अपने सांस्कृतिक, नैतिक, पारंपरिक मूल्यों आदि को कायम रखने के लिए कठिन परिश्रम करना पड़ता हैं। प्रवासियों के समक्ष अजनबी संकृति में रहते हुए अपने मूल्यों और सांस्कृतिक क्षरण को रोकने की एक गंभीर समस्या होती है। भाषा की समस्या, पहनावे की समस्या, नस्लवाद, सांस्कृतिक भिन्नता आदि की समस्या से प्रवासियों को रूबरू होना पड़ता हैं। इन प्रवासी व्यक्तियों में से कुछ ऐसे होते है जो उस परिवेश के यथार्थ को अपनी रचना के माध्यम से समाज के समक्ष प्रस्तुत करते है। सुषम बेदी जी एक ऐसी ही सशक्त हस्ताक्षर है जो अमेरिका के न्यूयार्क शहर में रहती है। सन् 1985 से 2009 तक कोलंबिया यूनिवर्सिटी में हिंदी और उर्दू प्रोग्राम की डायरेक्टर रही। वर्तमान में कोलंबिया यूनिवर्सिटी और न्यूयार्क यूनिवर्सिटी में विजिटिंग प्रोफेसर है। अब तक इनके बारह उपन्यास, कहानी संग्रह और काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके है। जिनमे ‘हवन’, ‘कतरा दर कतरा’, ‘लौटना’ आदि प्रसिद्ध है। बेदी जी के साहित्य में प्रवासी जीवन के नस्लीय भेदभाव, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, मनोवैज्ञानिक, आदि स्तरों पर होते परिवर्तनों को रेखांकित किया गया है। प्रवास करते भारतीयों तथा उनकी संस्कृति, सभ्यता, रस्मों-रिवाज, पहनावा, खान-पान आदि को कैसे घृणा की दृष्टि से देखा जाता है, उनके साथ कैसे भेदभाव किया जाता है, इन सभी समस्याओं पर सुषम बेदी जी का साहित्य ध्यान आकृष्ट कराता है। इसके साथ ही साथ प्रवास के दौरान होने वाले सांस्कृतिक टकरावों के फलस्वरूप जीवन के मानवीय मूल्य किस प्रकार परिवर्तित होते है इस ओर भी बेदी जी का साहित्य ध्यान आकृष्ट कराता है।
Conference
International Conference on "Global Migration: Rethinking Skills, Knowledge and Culture"