Hindi- Women Independence in the Stories of Divya Mathur
Author Name
Suambda kumari
Author Address
M G H U Wardha
Keywords
Women Diaspora, Diaspora Literature, Indian Diaspora
Abstract
मानव एक समूह के रूप में ऐच्छिक सम्पूर्ण विश्व एक छोटा गाँव बन गया हैं| प्रवासन के इस दौर में दुनिया की बीच की दूरी तो कम होती जा रही है और अनैच्छिक कारणों से स्थानांतरित होता रहा है| प्रवासन का यह रूप व्यापारी ,सैनिक,धर्म प्रचारक, से होते हुए विद्यार्थी ,खोजकर्ता के रूप में दिखाई देता है| भूमंडलीकरण के इस युग में लेकिन व्यक्तिगत दूरियां बढ़ती जा रही हैं| आज के भारतीय अपने विकासमान व्यक्तित्त्व के साथ एक नए भविष्य की आकांक्षा के लिए विदेशों में बसते जा रहे हैं| अपनी समाज की धरती से भिन्न नए प्रकार की सुख सुविधाओं के बीच अस्मिता का सवाल समय समय पर उन्हें उद्वेलित भी करता रहा है जिसकी अभिव्यक्ति वे साहित्य के माध्यम से कर रहे हैं| प्रवासी भारतीय पुरुषों के साथ साथ महिलाओं ने भी अपनी पीड़ा, दर्द ,शोषण, सुख-दुःख को अपनी रचनाओं के माध्यम से उकेरा है| भारत से दूर रहकर अपने मीठे और कटू अनुभवों को महिला लेखिकायें कहानियों के माध्यम से समग्र रूप में आभिव्यक्त कर रही हैं| उषा प्रियंवदा, सोमावीरा, अर्चना पैन्यूली, उषाराजे सक्सेना, दिव्या माथुर, सुषम वेदी, इला प्रसाद, उषा वर्मा, डॉ| पुष्पिता, सुधा ओम ढींगरा, आदि इस विधा के प्रमुख रचनाकार हैं| भारत हो या विदेश, स्त्री संघर्ष दोनों जगह है लेकिन वो विभिन्न रूपों में दिखाई देता हैं| भारत की अपेक्षा मेजबान देशों में स्त्री अधिक स्वतंत्र और आत्मनिर्भर है लेकिन पितृसत्तात्मक समाज की जकड़न और उससे मुक्त होकर अपने अस्तित्व को सिद्ध करने की चुनौती वहाँ भी मौजूद हैं| बाजारवाद ने स्त्री विमर्श को संक्रमित कर दिया है| स्त्रियाँ कई रूपों में दिखयी देती है| नये पुराने संस्कारों के बीच झूलती ये स्त्रियाँ आज द्वंद्व की शिकार तो हैं ही, साथ ही वह अपराधबोध से भी ग्रस्त है| लेखिका दिव्या माथुर ने स्त्री स्थिति को देखते हुए अपनी कहानियों द्वारा स्त्री समस्या को सम्पूर्णता से व्याख्यायित करने की कोशिश की है| आधुनिक कहानीकार कमलेश्वर दिव्या माथुर की कहानियों के बारे में कहते है –दिव्या जी की कहानियों में एक तरफ औरत की परजीविता यथास्थिति का यथार्थ है तो दूसरी तरफ संस्कार जनित संवेदनाएं |मध्यवर्ग की औरत की नियति की ये कहानियाँ अधिकांशतः उसके तिरस्कृत और प्रताड़ित व्यक्तित्व की कहानियाँ है |” दिव्या माथुर के स्त्री कई रूपों में आती है |वह शोषण, अत्यचार, अपमान को सहती तो है लेकिन जैसे ही उसे अपनी पराधीनता का एहसास होता है वह डंके के चोट पर मुक्ति का आह्वान करती है |वह किसी की परवाह नही करती | पति घर और नौकरी के बीच पिस रही ‘संजीवन’ कहानी की सीमा अंततः उत्पीड़न की सीमाएं तोड़ अलग घर में चली आती है |जिसको आना होगा वह अपने आप आ जायेगा |उसने जान लिया है कि उसे अपना उद्धार स्वंय करना होगा | परिवर्तन तथा पंगा कहानीयों में भी स्त्री सशक्त रूप में दिखाई देती है |रमणिका गुप्ता ऐसे पीढ़ी की लेखिकाओं को मुक्त पीढ़ी कहती है | रुढ़िवादी परम्पराओं पर सवाल उठाती यह पीढ़ी, ट्रांसजेंडर, लेस्बियन, और लिव इन रिलेशनशिप संबंधों को भी मुखर रूप में समर्थन कर रही हैं| सामाजिक दबाव, संस्कारिक द्वंद्व, स्त्री होने के सच, मुक्त होने की चाह, नस्लवाद, पितृसत्तात्मकता का स्वरुप आदि समस्याओं को भी दिव्या माथुर ने अपनी रचनाओं के आधार बनाया है | प्रस्तुत आलेख द्वारा हिंदी साहित्य के परिप्रेक्ष्य में दिव्या माथुर की कहानियों के माध्यम से स्त्री जीवन को समग्र रूप में समझने की आगे कोशिश की जाएगी|
Conference
International Conference on "Global Migration: Rethinking Skills, Knowledge and Culture"