Hindi- Socio-cultural struggle in Diaspora literature
Author Name
Abha Malick
Author Address
M G H U Wardha
Keywords
Socio-Cultural Struggle, Indian Diaspora, Diaspora Literature
Abstract
वर्तमान काल में हिन्दी साहित्य में जहाँ एक ओर स्त्री-विमर्श, दलित-विमर्श, आदिवासी विमर्श,अल्पसंख्यक विमर्श आदि चर्चित हो रहे हैं, वहीं प्रवासी विमर्श भी उभर कर अपनी चमक बिखेर रहा है। प्रवासी साहित्य ने विगत दो दशकों में अपनी विशिष्ट पहचान बनायी है। भारतीय मूल के विदेशों में रहने वाले लेखकों के सृजनात्मक लेखन को प्रवासी साहित्य कहा जाता है। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार विदेश में प्रवासी भारतीयों की संख्या दो करोड़ चालीस लाख बताई जाती है। ये प्रवासी भारतीय सुखद भविष्य की खोज में विदेश गए थे और फिर वहीं बस गए। इन प्रवासियों को दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है – पहले वर्ग में वे भारतीय हैं जो 19वीं सदी के पूर्वार्द्ध से 20वीं सदी के पूर्वार्द्ध तक मारिशस, गुयाना , त्रिनिनाद , दक्षिण अफ्रीका , सूरीनाम , फ़िजी आदि देशों में गिरमिट के रूप में विदेशी एजेंटों द्वारा खेतों में काम करने के लिए बहला फुसलाकर , सुखद भविष्य का सपना दिखाकर विदेश ले जाए गए थे। दूसरा वर्ग उन प्रवासी भारतीयों का है जो 20वीं सदी के उत्तरार्ध में समान्यतः भारत के स्वाधीन होने के बाद विकसित देशों में यथा अमेरिका , ब्रिटेन, कनाडा, जर्मनी, पुर्तगाल , डेन्मार्क, फ्रांस और खाड़ी आदि देशों में शिक्षा अथवा बेहतर भविष्य और आर्थिक उन्नति की तलाश में गए। नए देश में इन लोगों को, स्वयं को स्थापित करने के संघर्ष के दौरान जो अनुभव प्राप्त हुये , उन अनुभवों को उन्होने लेखन के माध्यम से अभिव्यक्त किया । वर्तमान में अनेक प्रवासी भारतीय, साहित्य लेखन में रत हैं और प्रतिष्ठित साहित्यकार के रूप में प्रसिद्ध हैं । ऐसी ही एक रचनाकार हैं अर्चना पैन्यूली जो मूलरूप से देहारादून की हैं परंतु वर्तमान में डेन्मार्क में रहती हैं और पेशे से अध्यापिका हैं। अभी तक उनके तीन उपन्यास – परिवर्तन, वेयर डू आइ बिलांग और पॉल की तीर्थयात्रा। उपन्यासों के अतिरिक्त उन्होने अनेक कहानियाँ और लेख भी लिखे हैं । अपने उपन्यासों में लेखिका ने प्रेम, मानवीय संवेदना, भारतीय आप्रवासियों की जीवन-शैली, संघर्ष, दुविधाएँ कठिनाईयां, सोच-विचार, दो संस्कृतियों के बीच उनकी जूझ व आप्रवासन की समस्याओं को दर्शाया है। तरक्की के इस दौर में, सभ्यता और आधुनिकता के बीच तालमेल बनाने की होड़ मची हुई है। इस दौर में परिवारों का ढांचा भी बदल गया है। बदलते हुये समय और उसके साथ निरंतर परिवर्तनशील मानव मूल्यों को भी लेखिका ने बड़ी कुशलता से दर्शाया है।
Conference
International Conference on "Global Migration: Rethinking Skills, Knowledge and Culture"